मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है - ये वाक्य शयद अरस्तु के है, मुझे ठीक से याद नहीं है. पर इतना जरूर है की ये सत्य हैं और किसी समाजशास्त्री ने ही कहे हैं. इसका उदहारण हम हर जगह देख भी लेते है. आज चाहे बात हो ट्विट्टर की या facebook की, हम चाहे ऑरकुट पर हों या किसी दूसरे साईट पर. आज चाहे कितना भी साइबर crime बढ़ गया हों या कम हों गया हों - मै यहाँ डाटा की बात नहीं कर रहा. फिर भी हम इन social networks का उपयोग कर रहे है और यक़ीनन करते भी रहेंगे. मैं ये कह रहा हूँ की सर्च engines बदल रहे है. वे ज्यादा social हो रहे है पहले सर्च डाटा based होते थे और अब वे social हो रहे हैं. सबसे पहले बात करते है डाटा based वेब सर्च की. मै इस बात का दावा नहीं करता की वाकई गूगल या dusre सर्च engine कोइ साईट या डाटा कैसे analyze करते है. पर ये सही है की वो हमारे द्वारा किए जाने वाले सर्च को ही analyze करते है वो चाहे. उसी से वे contains की उपयोगिता जानते है. क्योंकि आखिर सर्च रिजल्ट इंसानों को ही दिखाना है. ये था डाटा based सर्च, यानि की हम लोग क्या देखते है और कितना देखते है, कब और कौन
Avlokan - A Blog by Anand Kumar