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Nitish ji, Welcome to Blog world

First of all welcome to blogger and taking the step to be online via blogger.
I would like to simply say you are the best politician at present in India at this time(I think so).


Sir, You know that Internet is a very powerful platform. you may ask people what the want directly and interact them directly.
Please do not use this as fan book. (Probably I am wrong!)

Belive in this:
"Nindak niare rakhiye aangan kuti chawye,
Bin pani sabun bina, Nirmal kare subhaye"

With love and Best regards,

<<This is my first comment to Nitish Kumar's (Hon. CM, Bihar) Blog>>

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दीपावली है दीपों की

  दीपावली है दीपों कीकाली अंधियारी रातों मेंउम्मीद की किरण फैलातेअंधकार पर विजयश्री का जश्न मनातेये नन्हे-नन्हे, इतराते, लहराते, बलखातेदीपों कीदीपावली है दीपों की रिश्तों की ठण्ड को थोड़ा गरमानें कीफुरसत के इन पलों में संग बैठने कीथोड़ी अनायास ही बातें करने कीदीपावली है दीपों की गांवों घरों खेतों-खलियानों मेंगलियों-चौराहों में नन्हे भागतेनौनिहालों कीलड्डू, पेड़ा और बर्फी कीदीपावली है दीपों की माटी के कच्चे-पक्के दीपों कीउस मखमली ठंडी रात मेंहवा के ठन्डे झोंखे सेकपकपातें-फड़फड़ातें दीपों कीकुछ जलते, कुछ बुझतें दीपों कीदीपावली हैं दीपों की आओ इस दीपावली कुछ दीप जलायेंथोड़ी खुशियां उन घरों में भी पहुचायेंचाकों की उस संस्कृति को फिर जगाएंथोड़ा #MadeinIndia बन जाएँथोड़ा #GoLocal हो जाएँक्योंकिदीपावली है दीपों की ना इन बिजली के बल्बों कीना इन बेतरतीब उपकरणों कीना इस धुआं की, ना शोर शराबे कीन प्रदूषण में जलती धरा कीदीपावली है दीपों की आओ थोड़ा हिंदुस्तानी बन जाएँकुछ अपना सा #EarthHour मनाएंक्योंकिदीपावली है दीपों कीसम्पन्नता और सौहार्द कीअंधकार में भी उजियारे की दीपावली है दीपों की -आनन्द कुमार

Dal Lake: Beauty of Kashmir

I love to visit Dal again. Here are few pictures of Dal Lake:

जर्मन के जगह संस्कृत को अनिवार्य बनाना समझदार सरकार का बचकाना कृत्य है

छात्रों को क्या पढ़ना चाहिए? छात्रों ही एक गंभीर विषय और बहस का एक मुद्दा है। पर मेरे विचार से यह रोजगारपरक और विचारोंन्मुखी होना चाहिए। इससे छात्र दो रोटी का जुगाड़ कर सकें और एक बेहतर – जागरूक व्यक्ति बन सके। मैंने कई ऐसे लोगों के बारे में सुना है जिनके माता – पिता एक अच्छे पद पर हैं और जिनके बच्चे इंजीनियरिंग और डॉक्टरी की पढाई कर बैंकों में कलर्क की नौकरी कर रहे होते हैं। मजे की बात तो यह है जब यह सुनने को मिलता है कि उनकी इस(!) सफ़लता के पीछे निर्मल बाबा सरीखे लोगों का हाथ होता है। इसी से मुझे भारत की शिक्षा व्यवस्था की स्थिति का पता चल जाता है। बेहतर तो होता कि सरकार सभी ज़िला मुख्यालयों में एक भाषा विद्यालय का गठन करती या केंद्रीय विद्यालयों में एक भाषा सम्बन्धी विभाग होता जो स्वतंत्र रूप से उस विद्यालय और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप 6-7 भाषाओँ का चयन करता और न ही सिर्फ केंद्रीय विद्यालय बल्कि अन्य विद्यालयों के छात्रों की आवश्यकताओं को पूरा कर सकता था। इससे विद्यालयों को आवश्यकता के अनुरूप हर भाषा के छात्र मिल जाते। कुछ रोजगार भी पैदा होता और छात्रों को विकल्प भी मिल जाता। संस्कृत